गारंटी सिर्फ़ प्राकृतिक और संवैधानिक
अधिकतर लोग !
सुनी सुनाई,
लिखे हुई,
पढ़े पढ़ाई,
बातों पर आधारित,
कथन और तथ्य पेश करते हैं,
जिरह करते है,
पुख्ता जानकारी न होने के कारण,
मनोबल टूट जाता है,
मानसिक कुंठा, मायूसी पकड़ लेती है,
युक्ति के तहत, उदाहरण पेश नहीं कर पाते.
बातें धर्म की करते हैं,
व्यवसाय पर खत्म हो जाती है,
बातें राजनीति की करते है,
अंत में कहते हैं,
मैं वोट ही नहीं डालता,
फिर कैसे भक्त हो,
तुम्हारी तो दृष्टि ही छीन गई,
विचार करते नहीं,
अच्छे बुरे का,
भला भले भलाई का,
योगदान कुछ है नहीं,
गारंटी देने वाले को,
प्रतिकूल प्रभावों के बारे में,
क ख ग तक नहीं जानता,
अरे भाई !
जरा सोचो !!
तुम लोकतंत्र में एक सम्मानित पद पर हो,
क्या अपने मां बाप की धरोहर बेच कर,
ऐशोआराम करोगे,
वह भविष्य निधि है,
परिवार की, देश की,
उसे निलाम करोगे,
ये गारंटी है ???
क्या गारंटी है !!!
जनता को बेकार करने की,
उन पर महंगाई लादने की,
उन्हें न्यूनतम मजदूरी देकर,
पसीना, लहू निचोड लेने की,
विपक्ष की नींद हराम करने की,
जो स्वायत्त संस्थान थे,
उनको रखेल बना लेने की गारंटी,
किसी बुद्धिजीवी को स्वतंत्र सोच रखने पर सजा है,,
इस अराजकता की लपटें,
न केवल इस भूभाग के लिए,
आत्मघाती सिद्ध होगी !!!
( मनुष्य के लिए,, गारंटी या तो प्राकृतिक है या फिर *संवैधानिक )
महेन्द्र सिंह मनु