गाना होगा
हों लाख व्यस्ततायें पगले,
पर गान तो निज गाना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा.
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दिल ढूँढ़े मीत सतत् ख़ुद-सा,
पर नहीं मिला उसको अब तक.
है बहुत अकेला दिल मेरा,
यह बात काश! पहुँचे रब तक.
गर कोई न आये निज दिल तक,
तो स्वयं हमें जाना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा.
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है छुपी नायिका कहाँ सरस,
पूछे नायक बैठा दिल में.
जो सहज बाँह थामे खुश हो,
निज राह चले ले मंज़िल में.
इक बार जगे इच्छाशक्ति,
ख़ुद शरण उसे आना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा.
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तुम लाख दूर हो अंतर से,
पर प्रेम तो तुम तक पहुँचेगा.
तुम लाख छुपाओ भाव सरस,
पर गीत को वह ख़ुद वर लेगा.
दिल कैसे पसीजे गोरी का,
यह राज़ हमें पाना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा.
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संताप सुखों में बदलेंगे,
यह आश सदा ज़िन्दा रखना.
होगा जीवन निज प्रेम-पात्र,
अहसास सदा ज़िन्दा रखना.
बनकरके स्वयं का स्वयं मीत,
दिल में ही हमें छाना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा
***
अंतर में जलाओ प्रेम-दीप,
फैलेगा निश्चित उजियारा.
अंतर को बनाओ सरस सबल,
मत कहो उसे तुम बेचारा.
अंतर में रमे अँधियारे को,
ख़ुद सरस हमें ढाना होगा.
आखिर तो किसी के भी दिल में,
निज प्यार के हित थाना होगा.
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)