#गांव_के_बियाह
#गांव_के_बियाह
पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग
थी तो बस सामाजिकता ।।
गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ
जाती थी,
हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही इकट्ठा हो जाता था
और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं ।।
औरते ही मिलकर दुलहिन तैयार कर देती थीं और हर रसम का
गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा डालती थी ।।
तब DJ अनिल-DJ सुनील जैसी चीज नही होती थी और न ही
कोई आरकेस्ट्रा वाले फूहड़ गाने ।।
गांव के सभी चौधरी टाइप के लोग पूरे दिन काम करने के लिए
इकट्ठे रहते थे ।।
हंसी ठिठोली चलती रहती और समारोह का कामकाज भी।
शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना
नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता
था ।।
गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती
रहती ।।
सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी ।।
खाना परसने के लिए गाँव के लौंडों का गैंग ontime इज्जत
सम्हाल लेते थे ।