गांव में जब हम पुराने घर गये,
गांव में जब हम पुराने घर गये,
देखकर मंज़र वहाँ का डर गये।
गूँजा करती थीं जहाँ किलकारियाँ,
क्यूं वहाँ हालात हो बदतर गये।
एक थी दीवार आँगन में खड़ी,
देखकर जीते जी हम तो मर गये।
पूछती हैं प्रश्न घर की खिड़कियाँ,
किसलिये हमको यूँ तनहा कर गये।
झूमते बागान थे जिस जिस जगह,
फूल बिन पतझड़ के उनसे झर गये।
लहलहाती थी फसल खेतों में तब,
आज देखा हो सभी बंजर गये।
बूढ़ा बरगद भर रहा था सिसकियाँ,
क्यों “परिंदे” उसके भूखे मर गये।
पंकज शर्मा “परिंदा”