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23 Mar 2023 · 1 min read

गांव की यादें

अब तो ये,गांव खलिहान हुआ वीराना
पूर्वजों का धरोहर, अब हुआ बेगाना

शहर में जाकर, शहर के ही हो गए
गांव के बचपन की यादें, सब भूल गए

वो अल्हड़पन वो मस्तियां अब याद नहीं
शहर के भीड़, की दुनियां में सभी कैद यहीं

कितना स्वच्छ ,शुद्ध हवा का झोंका था
प्रफुल्लित मन,कभी नहीं घबराता था

खूब लगाते थे डुबकी, पोखर ईनार में
झमाझम बारिश के सुहानी फुहार में

पूरा गांव लगता था ,एक भरा पूरा परिवार सा
एक छोटी सी खुशी भी, लगता था त्योहार सा

वो हरे भरे फलों के बगीचे, और फुलवारियां
वो बूढ़े बरगद की छांव में,बड़े बुजुर्ग की गोष्ठियां

सांसे देने वाले घर द्वार अब,खंडहर बनते जा रहे
भीड़ भाड़,प्रदूषण से भरे शहरों में घुट घुट जी रहे

बड़े ही व्यापक और विस्तृत होते थे तीज त्योहार
संस्कार संस्कृति से परिपूर्ण थे ,समस्त घर परिवार

वो कच्ची मिट्टी के सड़क पे सरपट दौड़ता बचपन
रफ्तार पकड़ पक्की सड़क पे ला ,पटक गया यौवन

स्वरचित(मौलिक)

Language: Hindi
196 Views

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