दयाशंकर जी की अलौकिक शक्तियाँ
लगभग ६०-७० वर्ष पहले की बात होगी। पंडित दयाशंकर जी का गांव मे काफी रुतबा था। विद्वान और कर्मकांडी थे। गांव के शिव मंदिर में पुजारी थे।
थोड़ा गुस्सा ज्यादा था, जरा जरा सी बात पर तमतमा उठते, श्राप और गालियां देने से भी नहीं चूकते। गांव वालों को बुरा भी लगता तो उनकी इज्जत और विद्वता के कारण चुप हो जाते, उनकी वाणी से निकले शब्दों से कुछ अनिष्ट हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे
एक दिन उनके पुत्र का किसी से झगड़ा हो गया, हाथापाई के परिणामस्वरूप , हल्की फुल्की खरोंच भी आई, सामने वाला भारी पड़ गया था। बच्चों को झगड़ते देख, लोगों ने समझा बुझा कर बीच बचाव किया।
बेटे का बुझा हुआ चेहरा देख, जब दयाशंकर जी ने पूछा, तब पता चला कि फलाने के बच्चे के साथ झड़प हो गयी। फिर क्या था, पुत्र मोह में, गुस्सा तुरंत माथे पर चढ़ बैठा। उन्होंने तमतमाते हुए कहा, अभी उसके बाप के नाम से गरुड़ पुराण के पन्ने बिखेर देता हूँ।
पुत्र खुश हो गया कि पिता के पास तो अलौकिक शक्तियाँ हैं। बाल मन को चोटें थोड़ी कम महसूस होने लगी।
ऐसे ही एक दिन मंदिर मे बैठे बैठे किसी श्रद्धालु से थोड़ी बहस हो गयी, अनपढ़ आदमी था, पंडित जी से उलझने की गलती कर बैठा।
पंडित जी ने धमकी दे डाली की अभी मंत्र फूँक कर उसे चिड़िया बना देंगे।
श्रद्धालु डर गया और क्षमा याचना करके अपने घर लौट आया। मन खिन्न हो उठा और साथ मे ये डर भी सता रहा था कि पंडित जी मंत्र न फूँक बैठे।
धर्मपत्नी ने उदास देखा तो सारी बात पूछी। माजरा समझ आने पर पति को ढाँढस बंधाई कि ऐसा कुछ नही होगा। ये कहते कहते मन में कुछ और ही चल रहा था। समझदार और व्यवहारिक महिला थी।
दूसरे दिन पति को लेकर पंडित जी से मिलने मंदिर जा पहुँची।
प्रणाम करने के बाद , वो बोल पड़ी , पंडित जी कल जो आपने इनको चिड़िया बना देने की बात कही थी न, आज आप कृपा करके मुझे चिड़िया बना कर दिखा दीजिए।
ये निवेदन सुनकर, दयाशंकर जी बगलें झांकने लगे।
खैर, बात वहीं खत्म हो गयी।
पर ये सोच नहीं, एक जगह से जड़ें उखड़ी , तो दूसरी जगह खाद पानी देख फिर पनप उठती है।
बेहतर और कमतर की रस्साकशी का खेल किसी न किसी रूप में चलता ही रहता है।
बेवकूफी इतनी भी कमजोर नहीं की लड़ना छोड़ दे!!!