बेटी के घर का पानी
पुरानी मान्यता थी कि एक बार जिस घर बेटी ब्याह दी , फिर उस घर का पानी भी नहीं पिया जाता था। इसके पीछे का तर्क तो नहीं मालूम, कुछ रहा होगा उस काल खंड में जब ये प्रथा प्रचलित हुई होगी।
फिर यूँ देखने मे आया, कि बेटी के ससुराल जाने पर , आस पड़ोस से खाना बनकर समधी के लिए आता। बस खाना बेटी के घर का बना न हो, ये शर्त पूरी होनी चाहिए थी। कुछ दिन तक ये भी चला, क्योंकि सामाजिक एकता रही, लोग एक दूसरे के काम आते थे, संयुक्त परिवार की परंपरा भी थी।
जब संयुक्त परिवार भी विगठित होने लगे तो परिवार भी दो चार लोगों में सिमट कर रह गए। आस पड़ोस के लोगों से भी वैसी निकटता न रही।
पुरानी पीढ़ी के मन में अब भी कहीं कहीं “वो पानी वाली हिचकिचाहट बरकरार रही”
उसका भी एक रास्ता निकाला गया, खाना वगैरह अब खा सकते थे, उसका मूल्य अदा कर दें, ताकि प्रथा टूटने की ग्लानि से बचा जा सके।
मेरे मौसा जी भी एक बार किसी काम के सिलसिले में बर्दवान गए, एक दो दिन रुकना था।वहीं बेटी का घर भी था, जो अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी। जीजाजी पुलिस विभाग में अफसर थे।
मौसा जी के जाने पर सब खुश हुए। थोड़ी देर बाद चाय आयी, मौसा जी को हिचकते देख, दीदी ने कहा , बाबूजी आप चाय के पैसे दे दीजिएगा। वो राजी हो गए, चाय पीकर उन्होंने दो रुपये थमा दिए।
बाजार में चाय उस वक्त पचास पैसे की मिलती थी।
फिर खाना, दूसरे दिन का नाश्ता , सब होता रहा और हाथों हाथ पैसे का भुगतान भी।
मौसा जी को चाय पीने की आदत थोड़ी ज्यादा थी, । पर ये दो रुपये की चाय अब थोड़ी खटक रही थी कहीं, पहली बार दो रुपये दे चुके थे तो अब कम भी नहीं दे सकते थे।
खैर उन्होंने चाय पी ही ली।
कुछ देर बाद, जब दीदी ने पूछा कि बाबूजी चाय पीयेंगे क्या?
भोले भाले मौसा जी अपनी जुबान मे बोल बैठे” बाई, तू तो चाय प्या कर, मेरा सारा पीसा खोस लेसी”
( बेटी, तुम इस तरह चाय पिलाकर मेरे सारे पैसे छीनने के चक्कर में हो)
ये कहकर दोनों हंस पड़े।
पानी के पैसे भी दिए हो तो मुझे पता नहीं?
या मौसा जी ने ये सोच कर खुद को समझाने की कोशिश की हो कि चाय के ५० पैसे ही दिए और डेढ़ रुपये का तो वो पानी था जो चाय में उन मान्यताओं के कारण घुलने मे आनाकानी कर रहा था।
चीजों की क़ीमतें, मन में बैठी भावनाएँ और अंतर्द्वंद, कुछ न कुछ जोड़ तोड़ में लगा ही रहता है।
चिप्स के पैकेट से निकली हवा की कीमत, आज की नई मान्यतायें तय कर रही हैं।
शरीर के साथ विचारों को भी हवा पानी बदलते रहने की जरूरत है, अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की खातिर।