फांटा की बोतल
मैं अपने मित्र की सड़क पर प्रतीक्षा कर रहा था, उसको साथ लेकर मुझे खेलने के लिए ग्राउंड में पहुंचना था।
मैं जहाँ खड़ा था उसके ठीक पास ही ठंडे पेय जल की दुकान थी। उस समय इस तरह की ये एक मात्र दुकान ही थी हमारे गांव में।
दुकान में मुझसे लगभग पांच वर्ष बड़ा एक लड़का बैठा हुआ था।
दोस्त की प्रतीक्षा करते करते ,मेरी नज़र एक आध बार उस दुकान की ओर भी गयी, जहाँ कोकोकोला और फांटा की बोतलें बर्फ के टुकड़ों में दबी नज़र आ रही थी।
पर उस समय जेब में इतने पैसे तो होते नही थे कि एक फांटा या कोकोकोला की बोतल पी लूँ।
दुकान वाला लड़का भी मेरी ओर देख रहा था। उसने एक फांटा की बोतल निकाली और ओपनर से खोलकर मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, लो इसके चालीस पैसे हुए।
मैं चौंका और उसको कहा कि मैंने कब कहा कि मुझे ये चाहिए?
उसने कहा कि अब तो ये बोतल खुल गयी है, इसका क्या करूँ?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो फिर मुझे दिखाकर मुस्कुराते हुए फांटा पीने लगा।
मेरा दोस्त अभी तक नहीं आया था।
ठीक दस मिनट बाद , उस दुकान वाले लड़के ने यही क्रम दोहराया, मैंने फिर मना कर दिया और वो दूसरी बोतल भी ठीक उसी तरह पी गया।
मैं ये सोच रहा था कि वो मेरा मजाक उड़ा रहा था या इन झूठे बहानों की आड़ में खुद ही वो बोतलें पी जाना चाहता था।
जो भी हो , मैं उसके इस आचरण से व्यथित जरूर था।
इसी बीच मेरा दोस्त आ गया और हम ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े।