दुकानदार का हिसाब किताब
गांव में उन दिनों चोरी डकैती आम बात थी। डकैत जब मन करता धमक पड़ते , दो चार को लूटते और धमकी देते हुए निकल पड़ते कि खबरदार जो पुलिस को सूचित किया , देख लेना खैर नहीं है फिर।
बेचारे लुटे पिटे दुकानदार इसी डर से चुप बैठ जाते कि अगली बार कोई वारदात हुई , तो सबसे पहले इसी बात का बदला निकालेंगे कि पुलिस को बताने की हिम्मत कैसे हुई।
एक बार एक ऐसी ही वारदात के दौरान, कुछ डकैत एक दुकान में घुस बैठे। उस वक़्त कहाँ सी सी टीवी या मोबाइल कैमरे होते कि कोई छुपकर वीडियो बना रहा होता।
दुकानदार उनको देखते ही , एक दम से सकते में आ गया, आस पास की दुकानें, ये देखकर फटाफट बंद होने लगी।
डकैतों को चीज़ें लूटते देख उसने मिन्नत भी की और रोकने की कोशिश भी , उसकी ये दखलंदाजी उनको रास नहीं आई, तो एक डकैत ने तराजू के पास रखी पंसेरी(पांच किलो का बाट/वजन)उठा कर गुस्से में दे मारी।
दुकान लूट कर जब वो चले गए, तो दुकानदार चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा, कि डकैतों ने मुझको चौसेरी से मारा है।
तब तक आस पास के दुकानदार भी अब अपनी दुकानों से निकल आये थे।
किसी ने पूछ लिया, भाई, एक सेर, दो सेर और पांच सेर तो सबने देखे है, वो तुमको चार सेर के वजन से कैसे मार गए।
दुकानदार रोते हुए बोला, मारा तो पंसेरी(5 सेर ) से ही था, पर जब वो भाग रहे थे तो मैंने भी एक सेर का वजन उनकी तरफ फेंक के मार दिया था।
इस दुर्घटना में भी वो अपना हिसाब किताब नहीं भूला था