पूजा अर्चना
सेठ जी के बगीचे में एक सुंदर मंदिर बना हुआ था। स्कूल के ठीक बगल में था, कभी कभी हम द्वार खुला होने पर चले भी जाते थे।
बगीचे के रास्तों के दोनों ओर छोटे कद के गुच्छेदार पौधों की करीने से कटी कतार बहुत आकर्षित करती थी, कभी कभी माली चाचा उनको पानी पिलाते या बच्चों की तरह हज़ामत बनाते हुए दिख ही जाते थे।
कभी अच्छे मूड में होते , तो बीड़ी को दबाए मुँह से इशारा करते आम के पेड़ों की ओर जाने की इजाजत दे देते कि जाकर एक आध आम उठा लाओ। इजाजत देते वक्त बीड़ी भी उसी दिशा घूम जाती। इसलिए चाचा के साथ हम बीड़ी का भी मार्गदर्शन करने के लिए मन ही मन शुक्रिया करना नहीं भूलते।
चाचा की मौत के बाद, उनके बेटे को उनका पद उत्तराधिकार में मिला। अपनी समझदारी दिखाते हुए कौशल विकास के तहत , शाम को होने वाले भजन कीर्तनों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया और हारमोनियम बजाना सीख कर अब गा भी लेता था।
एक दिन सेठ जी की आने की प्रतीक्षा में उसने और मंदिर के पुजारी ने भजन गाना शुरू कर दिया , ये शुरुआती भजन भगवान के लिए थे। तभी सेठ जी भी आ गये और भगवान् के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। उनकी आहट मिलते ही , भजन को बीच में रोक कर , हारमोनियम पर उंगलियां नए सिरे से दौड़ने लगी,अब वो भजन शुरू हुआ जो सेठ जी को पसंद था।
सेठ जी और भजन गाने वाले अपनी अपनी पूजा अर्चना मे व्यस्त दिखे।