Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Aug 2020 · 3 min read

दादी के हाथ की चाय

साल में एक आध बार, जब कभी माँ या ताई जी के हाथ की बनी चाय को बेस्वाद कह कह कर दादी जब पूरी तरह से ऊब जाती,

तो अचानक दोपहर के तीन चार बजे गुस्से में भुनभुनाते हुए चूल्हा जलाकर खुद चाय बनाने बैठ जाती।

उनके कदम पड़ते ही घर के चौके के सारे खाने पीने के सामान, पतीला, गिलास, चिमटा, जमूरा, एक दम सावधान और सलाम करने की मुद्रा में आ जाते कि आज बहुत दिन के बाद बड़ी मालकिन ने आने की जहमत उठाई है।

दादी को इनमें से हर एक बर्तन का कच्चा चिट्ठा मालूम था।

कुछ मजदूर किस्म के बर्तन जो पड़ोसियों के यहां सामान ले जाते थे, पर नज़र रखने के लिए तो उनकी बड़ी मालकिन ने उनके हाथों पर नाम तक खुदवा दिए थे ताकि पड़ोसी के घर जाकर कामचोर की तरह कुछ ज्यादा ही देर आराम करने बैठ जाएं, तो पहचान कर घसीट के लाने में ज्यादा दिक्कत ना हो।

एक दो पिचके मुंहलगे लोटे तो देखते ही शिकायत करने से भी बाज़ नहीं आते, देखते ही बोल पड़ते,

“देखो बड़ी मालकिन, किस तरह तुम्हारी छोटी बहू ने परसों हाथ से गिरा दिया है, कमर टूट गई है”

दादी उसकी पीठ पर हाथ फेरकर, जमूरे को ढूंढते हुए, बड़बड़ा उठती,

“इनसे एक काम ढंग से नहीं होता। कितना पुराना और वफादार लोटा है। मेरी ओर देख कर बोलती , तुम्हारे दादा ने फलाने के यहां पूजा कराई थी, तब आया था ये”

खैर, उन्हें समझा बुझाकर, पतीले में पानी चढ़ा कर उसे थोड़ा गर्म होने देती और अदरख, इलायची कूटने लग जाती,
जब दोनों को पीट पाट कर उनको संतोष हो जाता तो गर्म होते पानी में पटक देती, वे हाय हाय की आवाजें निकालने लगती।
तैर कर निकलने की कोशिश भी की होगी, तो मुझे पता नहीं।

दादी नजरें गड़ाए उनकी हरकतों का ध्यान रखती।

एक दो मिनट बाद जब पतीले से पानी के बुलबुले छूटने लगते तो दो चार चुटकियों से चाय के दाने डालती, चाय के दाने गिरते ही उबलता पानी एक तेज आवाज में गुस्से के साथ थोड़ा ऊपर उठता।

ये अदरख, इलायची और चाय के बीच का झगड़ा था, वे चाय को कहती, कमीनी कहाँ रह गयी थी, हम इतनी देर से, मुफ्त में जली जा रही हैं तेरे कारण।

चाय बोलती, क्या कहूँ बहन, इस कमबख्त बुढ़िया को तो मुझे खौलते हुए पानी में डाल कर ही चैन मिलता है।

दादी,चुटकी में चाय के बचे दानों को लेकर सोचती कि इन्हें भी डालूँ या नहीं, फिर कुछ सोच कर उन्हें डब्बे के हवाले कर देती, डब्बे में गिरते ही बची खुची चाय के दाने ऐसे दुबक कर बैठ जाते जैसे जान बचाकर लौटे हों।

ग्लास से जब दूध डलता ,तो थोड़ी देर के लिए , चल रहा ये लड़ाई झगड़ा शांत होता, फिर चार पांच बार उंगलियों से चीनी डालकर, दादी चाय के रंग को निहारने बैठ जाती।

दो तीन बार उबाल दिलाकर , ये ऐतिहासिक चाय बन जाती।

दादी और बच्चे अपना अपना ग्लास पकड़ कर फूंक मार कर जब चाय सुड़कते तो उसकी गर्माहट, सुगंध और मिठास सचमुच कुछ अलग ही होती थी!!!

चाय को मुँह तक ले जाते वक्त दादी की कनिष्ठा उँगली ग्लास छोड़कर धीरे धीरे हवा में न जाने क्यों ऊंची उठने लगती थी, शायद कहती हो, ऐसे बनाई जाती है चाय।

फिर अचानक एक दिन गौर किया कि ग्लास से पानी पीते वक़्त मैं भी उस मुद्रा दोष का शिकार हो चुका हूँ।

और तो और मेरी बेटी जिसे अपनी पड़दादी को देखने का कभी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, वो भी उनकी इस अनोखी जन्मजात विरासत के साथ पैदा हुई है। उसके दोस्त तो मज़ाक में अक्सर कहते हैं, ” देखो जोल खाच्छे, एबार देखबे एकटा छोटो एन्टेना उठबे”
(देखो ये पानी पी रही है, अब एक छोटी एन्टेना सर उठाएगी)।

दादी उसकी उंगलियों में भी कहीं छुपी बैठी है शायद।

कभी अपने फ्लैट में आज भी जब चाय बनाता हूँ तो ठीक उसी क्रम के अनुसार यंत्रवत चाय बनती है, इसमें बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है।

धर्मपत्नी ने कई बार टोका भी की आप एक साथ सब कुछ क्यों नहीं डाल देते।

मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं होता,

दादी से भला कौन पंगा ले, पता नहीं आकाश से देख रही हो? बात न मानता देख फिर बड़बड़ाने लगे?

Language: Hindi
3 Likes · 6 Comments · 762 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
4216💐 *पूर्णिका* 💐
4216💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अर्थ के बिना
अर्थ के बिना
Sonam Puneet Dubey
"नग्नता, सुंदरता नहीं कुरूपता है ll
Rituraj shivem verma
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
!..........!
!..........!
शेखर सिंह
राम तुम्हारे नहीं हैं
राम तुम्हारे नहीं हैं
Harinarayan Tanha
पर्वत दे जाते हैं
पर्वत दे जाते हैं
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
इस गुज़रते साल में...कितने मनसूबे दबाये बैठे हो...!!
इस गुज़रते साल में...कितने मनसूबे दबाये बैठे हो...!!
Ravi Betulwala
**ग़ज़ल: पापा के नाम**
**ग़ज़ल: पापा के नाम**
Dr Mukesh 'Aseemit'
जो व्यक्ति आपको पसंद नहीं है, उसके विषय में सोच विचार कर एक
जो व्यक्ति आपको पसंद नहीं है, उसके विषय में सोच विचार कर एक
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
"" *वाङमयं तप उच्यते* '"
सुनीलानंद महंत
Feelings of love
Feelings of love
Bidyadhar Mantry
..
..
*प्रणय*
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
सत्य कुमार प्रेमी
3) “प्यार भरा ख़त”
3) “प्यार भरा ख़त”
Sapna Arora
हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि
हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि
Shashi kala vyas
दीवाली
दीवाली
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
இந்த உலகில்
இந்த உலகில்
Otteri Selvakumar
*वह भाग्यहीन हैं महिलाऍं, पति की चेरी कहलाती हैं (राधेश्यामी
*वह भाग्यहीन हैं महिलाऍं, पति की चेरी कहलाती हैं (राधेश्यामी
Ravi Prakash
"याद के काबिल"
Dr. Kishan tandon kranti
मिट्टी के परिधान सब,
मिट्टी के परिधान सब,
sushil sarna
World Tobacco Prohibition Day
World Tobacco Prohibition Day
Tushar Jagawat
मालिक मेरे करना सहारा ।
मालिक मेरे करना सहारा ।
Buddha Prakash
मी ठू ( मैं हूँ ना )
मी ठू ( मैं हूँ ना )
Mahender Singh
पंछियों का कलरव सुनाई ना देगा
पंछियों का कलरव सुनाई ना देगा
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सफर जीवन का चलता रहे जैसे है चल रहा
सफर जीवन का चलता रहे जैसे है चल रहा
पूर्वार्थ
जन्मदिन मुबारक तुम्हें लाड़ली
जन्मदिन मुबारक तुम्हें लाड़ली
gurudeenverma198
मेरी तो गलतियां मशहूर है इस जमाने में
मेरी तो गलतियां मशहूर है इस जमाने में
Ranjeet kumar patre
याद रख कर तुझे दुआओं में ,
याद रख कर तुझे दुआओं में ,
Dr fauzia Naseem shad
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
संजय कुमार संजू
Loading...