ताऊजी की सगाई
मेरे मझले नानाजी टाटानगर के प्रसिद्ध पुरोहित व विद्वान व्यक्ति थे।
अपनी ज्येष्ट पुत्री के संबंध के लिए रिश्ता तलाश रहे थे, तो किसी यजमान ने उन्हें हमारे घर व दादाजी के बारे मे बताया होगा।
एक दिन टाटानगर से वो हमारे गांव आये और अपने यजमान के रिश्तेदार जो हमारे गांव के प्रसिद्ध सेठ थे, की गद्दी(व्यापारिक लेन देन की जगह) पर पहुँच कर अपना परिचय और आने की मंशा बताई। सेठ जी ने उनको बड़े आदर सत्कार के साथ बैठाया,
और फ़ौरन ही अपने नौकर के हाथों खबर भेज कर दादाजी को बुलवाया ,जो उनके पुरोहित भी थे।
उम्र मे बड़े होने के कारण दादाजी उनका बहुत लिहाज करते थे।
आते ही, उन्होंने ने नानाजी का परिचय करवाया और कहा ये पंडित जी टाटानगर से आये हैं अपनी ज्येष्ट पुत्री के रिश्ते के लिये, तुम्हारा मझला बेटा भी अब विवाह योग्य हो गया है,
साथ मे ये भी कहा कि संबंध के लिए ये रिश्ता उत्तम है और मैंने तो हाँ भी कह दी है।
दादाजी को सोच पड़ता देख, उन्होंने झट से, ये भी अपनी ही तरफ से जोड़ दिया कि लड़की बहुत सुशील है और रामायण भी पढ़ लेती है।
दादाजी थोड़ा हिचकिचाए और बोले कि एक बार अपने बड़े भाई से भी सलाह मशवरा कर लूं।
इस बात पर सेठ जी ने हल्का गुस्सा दिखाते हुए कहा, अरे, तुम्हारे भाई जी यहां आकर सिर पर चढ़ेंगे क्या?
जब मैंने कह दिया कि ये रिश्ता हर तरह से ठीक है, तो इसके आगे कोई बात बनती है क्या?
दादाजी निरुत्तर थे।
फिर सेठ जी ने नाना जी की ओर देखकर कहा , लाइये तिलक के शगुन का एक रुपया दीजिये और इस रिश्ते को पक्का समझिए।
आप कोई अच्छा सा मुहूर्त निकाल कर मुझे सूचित कर दीजिएगा, हम बारात लेकर पहुँच जाएंगे।
इस आश्वासन के साथ नानाजी खुशी खुशी लौट गए।
दादाजी अब भी सेठ जी के पास बैठे हुए थे। उनको इस तरह बैठा हुआ देख सेठ जी ने कहा कि अब तुम भी अपने घर जाओ और घर वालों को भी ये खबर दे दो।
दादाजी फिर भी बैठे रहे, तो सेठ जी को थोड़ा समझ आया, उन्होंने तुरंत ही भांपते हुए कहा, अच्छा तो तुम इस एक रुपए के लिए बैठे हुए हो, वो तो मैं तुम्हे नही देने वाला।
इसकी तो मैं मिठाई मंगा कर खाऊंगा, आखिर तुम्हारा बेटा मेरा भी तो बेटा लगता है।
दादाजी खाली हाथ लौट गए।
न कोई जन्मपत्री मिलायी गयी, न ही कोई दहेज या लेन देन की ओछी बात हुई,
बस इतना ही काफी था कि दोनों परिवार खानदानी हैं ।
लड़के लड़की को क्या जाकर देखना दिखाना, बच्चे तो सबके एक जैसे ही होते हैं।
लोग संस्कारी परिवार के आगे कुछ देखने की जरूरत ही नही समझते थे। उनके पास ये दूरदृष्टि भी थी कि विवाह महज दो व्यक्तियों मामला नही हो सकता।
एक रिश्ता पूरे परिवार से जुड़ता है, इसलिए नए रिश्तों से जुड़ने से पहले उनकी जड़ों की गहराई पर ही ध्यान रखा जाता था।
हो सकता है कि आज के समय मे , रिश्ते तय करने का ये पैमाना गलत लगे।
और ये भी सही है कि बदलते दौर मे समय के अनुसार मान्यताएं भी जरूर बदलती है।
पर वो एक सरलता, अपनापन , दिखावे से रहित जिंदगी को हम कही पीछे छोड़ आये है।
मेरे ताऊजी ताईजी ने अपनी भरी पूरी जिंदगी एक दूसरे के साथ गुजारी।
ताऊजी को कई बार मजाक मे ताई जी को उलाहना देते जरूर सुना था कि तुमने यहाँ आकर अपनी जिंदगी मे एक बार भी रामायण नही पढ़ी, ताई जी ये सुनकर बस मुस्कुरा देती और कहती , आज खाने मे क्या बनाऊ?