फ़ेल होने का गम
मेरे चचेरे बड़े भाई जो उम्र मे मुझसे काफी बड़े थे,
उनका गांव मे एक प्राथमिक विद्यालय हुआ करता था।
कालांतर में , उन्होंने पुरोहित कर्म करना शुरू कर दिया। गांव में उनकी इज्जत थी।
सामाजिक कार्यों में भी वो आगे रहते थे। गांव में कॉलेज शुरू करने में भी उनका काफी योगदान रहा।
एक बार उनके पुत्र, जिसे हम पलटन कहकर बुलाते थे, का परीक्षाफल आने वाला था।
स्कूल से लौटते छात्रों से पता चला कि इस बार वो फेल हो गया है।
भाई साहब गुस्से और बैचैनी में घर के बाहर चहल कदमी कर रहे थे कि जैसे ही वो आएगा , आज अच्छे से उसकी खबर लेंगे।
पर पलटन गायब था, बहुत देर इंतजार करने के बाद भी उसका कोई अता पता न था।
अब भाई साहब के गुस्से और बैचैनी की जगह फिक्र ने ले ली, कि जवान होता बच्चा दुःखी होकर कोई गलत कदम ना उठाले।
वो सभी आने जाने वालों से उसके बारे में पूछने लगे।
तभी एक छोटे बच्चे ने उनको आकर सूचित किया कि,
“ताऊजी, पलटन भैया तो हनुमान मंदिर के पास कंचे खेल रहे हैं।
भाई साहब का गुस्सा अब सांतवे आसमान पर था। वो फौरन मंदिर की ओर गए और पलटन को देखकर जोर से चिल्लाये,
“नालायक, एक तो फेल हो गया और घर आने की बजाय कंचे खेल रहा है”
पलटन ने शांत स्वर में जवाब दिया,
“पापाजी आपको क्या लगता है कि मैं खुशी में खेल रहा हूँ, मैं तो कंचे खेल कर अपना दुःख भुलाने की कोशिश कर रहा हूँ ”
भाई साहब के चेहरे का भाव एक पल के लिए देखने के काबिल था,
मैं पलटन की धृष्टता से उपजे विश्वास और मानसिक संतुलन को देखकर विस्मित था।