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17 Jul 2022 · 1 min read

गाँव की साँझ / (नवगीत)

तप्त पठरिया
की नदिया से
इतराती, पर
सधी हुई-सी
भरी खेप
पनहारिन जैसी
उतर रही है
साँझ गाँव में ।

दौड़ लगाकर
पूँछ उठाकर
आती हैं
गायें रंभातीं ।
भेड़-बकरियाँ
बना पँक्तियाँ
चली आ रहीं
हैं मिमयातीं ।

बहुएँ जला
रही हैं चूल्हे ,
जोड़ रही
हैं टूटे कूल्हे ।
धधक रही है
छाती इनकी
सासों की
कर्कशा काँव में ।

गुंड-कसैंड़ी,
कलशे-गगरे,
कूप,नलों पर
भीड़ मची है ।
उछल रहीं हैं
मधुर गालियाँ,
तना-तनी में
रसा-कसी है ।

हार-खेत से
आते-आते ,
पोंछ पसीना
थकन मिटाते ।
बरगद के
नीचे चौरे पर
बैठ गए
मजदूर छाँव में ।

तप्त पठरिया
की नदिया से
इतराती, पर
सधी हुई-सी
भरी खेप
पनहारिन जैसी
उतर रही है
साँझ गाँव में ।

— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी,(रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।

Language: Hindi
Tag: गीत
11 Likes · 6 Comments · 385 Views
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