ग़म मौत के ……(.एक रचना )
ग़म मौत के ……(.एक रचना )
ग़म मौत के कहाँ जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़ भी कुछ देर ही किसी के लिए जलते हैं
इतने अपनों में कोई अपना नज़र नहीं आता
अब तो रिश्ते स्वार्थ की कड़वाहट में पलते हैं
दोस्ती राहों की अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं
मिट जाते हैं गीली रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ
फिर भी क्यूँ लोग गीली रेत पे साथ चलते हैं
सच को छुपा कर लोग क्यूँ आडम्बर में जीते हैं
दम तो बिना पैरहन के ही ज़िस्म से निकलते हैं
सुशील सरना