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2 Oct 2024 · 1 min read

ग़ज़ल __न दिल को राहत मिली कहीं से ,हुई निराशा भी खूब यारों,

आदाब दोस्तों ,,,
बह्र ,,,,, 12122 12122 12122 12122
क़ाफिया __ आशा,
रदीफ़ __ भी खूब यारों,,
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
गज़ल
1,,,
न दिल को राहत मिली कहीं से ,हुई निराशा भी खूब यारों,
सुकून खातिर जहां भी ठहरे , किया तमाशा भी खूब यारों।
2,,,,
मिला मुक़द्दर भी कांच जैसा, अटूट रिश्ता निभा न पाया,
निखर के बिखरा वो जार ऐसे ,अजब तराशा भी खूब यारों ।
3,,,
क़मर को तारों ने घेर रक्खा ,अबर के पर्दों की चिलमनों में ,
नज़र नज़र का है फेर देखो ,दिखी न आशा भी खूब यारों ।
4,,,
गुलाब रस का बना है शरबत,जो रूह को खुश रखे हमेशा ,
दिलों को रक्खे खुमार ऐसा , ये है बताशा भी खूब यारों ।
5,,,,
हज़ार रंगों में सोच होती ,अगर ये महफिल जवान होती ,
ये ‘नील’ कह दो कहीं पे तोला कहीं पे माशा भी खूब यारों ।

✍नील रूहानी,,,01/10/2024,,,
( नीलोफ़र खान )

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