ग़ज़ल _ लगी सदियां वफ़ा के ,मोतियों को यूं पिरोने में ,
Good morning 🌄
बह्र…1222 1222 1222 1222,,,
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ग़ज़ल
1,,,
लगी सदियां वफ़ा के ,मोतियों को यूं पिरोने में ,
मगर क्या वक्त लगता ,टूट कर धागे से खोने में।
2,,,
ख़रीदा है हमेशा हर , गमों को मुस्कुराकर ही ,
दफ़न करती हूं सीने के नए इक ख़ास कोने में।
3,,,
अगर भूले से रख दूं आप के बिस्तर पे कुछ गम मैं ,
नज़र से भूल होती, सब चले जाते हैं धोने में ।
4,,,
किया है सामना जब भी ज़माने की हवाओं का ,
सुनी जाती नहीं मेरी , कटा है वक्त रोने में ।
5,,,
खयालों के समंदर में , उतरकर भूलते दुनिया ,
दहलता दिल खिसक जाए, ज़रा सा पैर सोने में।
6,,,
परखता है ज़माना क्यों, हमेशा आशिक़ी में ही ,
मुहब्बत मांगती जब नील, लग जाता समोने में ।
✍️नील रूहानी ,, 19/09/2024,,,
( नीलोफर खान)