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1 Sep 2024 · 1 min read

ग़ज़ल _ मुहब्बत में बहके , क़दम उठते उठते ,

आदाब दोस्तों ,
दिनांक ,,,,01/09/2024,,,
बह्र,,,, 122 – 122 – 122 – 122,,
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
🌼 गज़ल 🌼
1,,,,
मुहब्बत में बहके , क़दम उठते उठते ,
नशा हो गया है , सनम कहते कहते ।
2,,,,
जो दीदार हो गर , फ़ना भी तो हो जा ,
कहानी ख़तम हो , ज़ुलम सहते सहते ।
3,,,,
न आया है महबूब , कितने बरस तक ,
कहाँ रह गया है , वहम चलते चलते ।
4,,,,
करो याद हमको, न भूला करो तुम,
सयाही ख़तम है , करम लिखते लिखते ।
5,,,
जुदाई में बरखा के आँसू गिरे जब ,
नदी रो पड़ी थी, बलम बहते बहते ।
6,,,
उबल कर गिरी चाय आखिर ज़मीं पर,
न रोका किसी ने , चिलम भरते भरते ।
7,,,
बुझा कर चिरागों से हमने ये पूछा ,
कहाँ ‘नील’ खोयी, क़लम रखते रखते।

✍नील रूहानी,,01/09/2022,,,,
( नीलोफ़र खान )

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