ग़ज़ल _ मुसाफ़िर ज़िंदगी उसकी , सफ़र में हर घड़ी होगी ,
#ग़ज़ल
दिनांक _09/08/2024,,,
बह्र ,,,, 1222 1222 1222 1222
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💖 ग़ज़ल 💖
1,,,
मुसाफ़िर ज़िंदगी उसकी , सफ़र में हर घड़ी होगी ,
जहां तक सांस चलती है, वहीं तक रुक सकी होगी।
2,,,
अभी कुछ ख्वाहिशें बाक़ी, ज़माने की ज़रूरत है ,
करे किससे शिकायत वो , गुज़ारा कर रही होगी ।
3,,,
मिला होगा सजन प्यारा, नसीबा जागता होगा ,
खनकती चूड़ियों के सँग , परी सी महजबी होगी ।
4,,,
नहीं मालूम था अंजाम, क्या होगा ज़माने में ,
चली होगी वो तन्हा रूह महफ़िल रो पड़ी होगी ।
5,,,
बुलाएगी वो बागों में , मैं सरपट दौड़ जाऊंगा ,
गुलों से खेलती होगी , यकीनन वो कली हाेगी।
6,,,
तसव्वुर गुल खिला बैठा , नमी से भर गई आँखें,
कभी जब “नील” मिल जाए ,तो शामें शबनमी होगी ।
✍️ नील रूहानी,,, 09/08/2024,,,
( नीलोफर खान )
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