ग़ज़ल _ मिले जब भी यारों , तो हँसते रहे हैं,
दिनांक _ 08/06/2024
बह्र~~122 122 122 122
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#गज़ल
1,,,
मिले जब भी यारों , तो हँसते रहे हैं,
खुशी के वो पल , हम चुराते रहे हैं ।
2,,,
सभी फूल खिलते ,बहारें जो आती ,
खिज़ाँ में हमी हैं, जो खिलते रहे हैं ।
3,,,
बड़ा लुत्फ़ आता, है महफ़िल में आकर,
मुहब्बत तुम्हीं से ही करते रहे हैं ।
4,,,
गुनाहों में गिर कर भला किसका होता ,
यही सोच रखने से , डरते रहे हैं ।
5,,,
क़दर कौर की बस, उन्हीं को तो होती ,
सफ़र ज़िंदगी में , जो भूखे रहे हैं ।
6,,
गले से लगाकर ,बनो उनकी ताक़त ,
गमों में जो अपने , सिसकते रहे हैं ।
7,,,
ज़माने में ऐसे , भी कमज़र्फ होते
जो एहसान करके , गिनाते रहे हैं ।
8,,,
मिले ‘नील’ इज़्ज़त, हमेशा उन्हीं को ,
बुजुर्गों के आगे , जो झुकते रहे हैं ।
✍नील रूहानी, 08/06/2024,,
( नीलोफ़र खान )