ग़ज़ल _ मतलब बदल गया।
बह्र 👉👉 22 22 22 22 22 2
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काफ़िया — ओं // रदीफ़ — का
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गज़ल
1,,
मतलब बदल गया है ,आज किताबों का ,
इंटरनेट ने वक़्त जो ,छीना बच्चों का ।
2,,,
बचना टूट न जाये , दिल भी लम्हों का ,
बिस्तर बिछा रखा है, उसने काँटों का ।
3,,,,
बन्दर बाँट है खेल सयासत का देखो ,
रखता कौन खयाल यहाँ पे हिसाबों का।
4,,,,
गुलशन गुलशन खुशबू के अम्बार लगे,
पिसना इत्र बनाना, काम गुलाबों का।
5,,,,
जाने क्या क्या याद दिलाता रहता है ,
थोड़ा थोड़ा पानी , उसकी आँखों का ।
5,,,
छिपकर करना वार है ,इनकी आदत भी,
मसला अपना आसतीन के सांपों का ।
6,,,
गुरबत का मारा उम्मीद पे जीता है ,
बेहतर होगा शायद कल फिर लोगों का ।
7,,,
‘नील’ निवालों की खातिर ,मत ठुकराओ ,
झोली भर दो तुम ही , कौन गरीबों का ।
✍नील रूहानी,,15/06/23,,,
( नीलोफ़र खान )
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