ग़ज़ल _ मंज़िलों की हर ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं ।
ग़ज़ल
1,,,
मंज़िलों की हर ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं ,
मरहलों की कुछ क़दर हो ये ज़रूरी तो नहीं।मतला
2,,,
रात आँगन में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं,
गोद में यारों क़मर हो ये ज़रूरी तो नहीं।हुस्न ए मतला
3,,,
रुख़ पे पर्दा जां नशीं के रौशनी चारों तरफ़,
हाथ में अंबर अधर हो ये ज़रूरी तो नहीं।
4,,,
दिल से निकले लफ्ज़ जो बनती गई तहरीर इक ,
दास्तां दर- दर गुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं ।
5,,,
हसरतें वीरान हैं , खामोशियाँ उलझी उधर ,
आशिकों पर भी क़हर हो ये ज़रूरी तो नहीं ।
6,,,
“नील” है ख़ामोश तबियत , चांदनी पुरज़ोर है ,
लाज़मी लहजा कवर हो , ये ज़रूरी तो नहीं ।
✍️ नील रूहानी … 18/07/2024,,,
( नीलोफर खान)