ग़ज़ल _ दर्द सावन के हसीं होते , सुहाती हैं बहारें !
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दिनांक,,,01/08/2024,,,,
बह्र ,,,2122-2122-2122-2122,,,
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🍀🌸 गज़ल 🌸🍀
1,,,
दर्द सावन के हसीं होते , सुहाती हैं बहारें !
याद बनकर घर के आंगन ,सर झुकाती हैं बहारें !!
2,,,
फूल खिलते हैं महकते, खूब खुशबू को उड़ाकर !
पेड़ से लिपटी लताएं , मुस्कुराती हैं बहारें !!
3,,
जब ये बारिश का समां होता है हरियाली ज़मीं पर !
नाचती, गाती हैं सखियाँ, लहलहाती हैं बहारें !!
4,,,
चांदनी फैली हुई है ,चांद खोया है कहाँ पर !
घूमते फिरते हुए लोगों को , बुलाती हैं बहारें !!
5,,,
ज़िक्र आंधी का नहीं होता है, बागों में कहीं अब !
शाम होती है रुमानी , चहचहाती हैं बहारें !!
6,,,
शबनमी घासों पे तन्हा , वो गुज़रते हैं नमी पर !
आंख अश्क़ों से भरी है , गुनगुनाती हैं बहारें !!
7,,,
रूप आंचल में छिपाकर ,राह तकती है वहाँ पर !
‘नील’ चौखट पे खड़ी है, दिल जलाती हैं बहारें !!
✍नील रूहानी,,,01/08/2022,,,,🍁
( नीलोफ़र खान ) 🍁
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