ग़ज़ल _ तलाशो उन्हें बे-मकाँ और भी हैं ,
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वज़्न – 122 122 122 122
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ग़ज़ल
1,,
तलाशो उन्हें बे-मकाँ और भी हैं ,
ज़रा देख लो बस्तियाँ और भी हैं । मतला
2,,
मिटाया है बारिश ने कितनों को आख़िर ,
मिली हैं मगर , अर्ज़ियाँ और भी हैं ।
3,,
वफ़ा जिन से की थी, वही भूल बैठे ,
सुना तुम ने कुछ , या बयाँ और भी हैं।
4,,
करो नफ़रतें हम मिटा दें सभी को ,
मुहब्बत के यारों , बुतां और भी हैं ।
5,,
फ़साना सुनाया, सुनाकर बताया ,
अभी इश्क़ के , इम्तिहाँ और भी हैं ।( गिरह)
6,,
करी शादियाँ जब , गरीबों की हमने ,
तो कहने लगे, बेटियाँ और भी हैं ।
7,,
निभाया जिन्हें हमने अपना समझकर ,
बदल रुख़ कहा, आशियाँ और भी हैं ।
8,,
नसीबा चमकता रहे , अंजुमन का ,
तुम्हारी तरह बिजलियाँ और भी हैं ।
9,,
बरस जायेगा फिर से सावन इधर भी ,
कहे “नील”, अब्र – ए – रवाँ और भी हैं।
✍️नील रूहानी,,,, 31/07/2024,,,
( नीलोफर खान)