ग़ज़ल _ टूटा है चांद वही , फिर तन्हा – तन्हा !
नमन दोस्तों !
दिनांक ,,,03/08/2024,,,
बह्र,,,,22 22 22 22 22 2 ,,,
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🌸 गज़ल 🌸
1,,,
टूटा है चांद वही , फिर तन्हा – तन्हा !
रोयी है रात नयी , फिर तन्हा – तन्हा !!
2,,,
बन्जारों के खेल , अजूबे होते हैं !
चुप रातें हों काली, फिर तन्हा – तन्हा !!
3,,,
आखिर दुनिया की चाहत क्या क्या होती !
खेल नये सिखलाती , फिर तन्हा – तन्हा !!
4,,,
अनपढ़ भी राज करे , पढ़ कर मुँह देखे !
ऐसी मुश्किल आयी, फिर तन्हा – तन्हा !!
5,,,
ज़ख्म हरे रहते हैं , दिल के , लाख सही !
भरते हैं घाव कभी , फिर तन्हा – तन्हा !!
6,,,
अन्जाना सा , खौफ़ पुकारे राहोंं में !
बीच समंदर डूबी , फिर तन्हा – तन्हा !!
7,,,
उँचें पर्वत , बीच डगर पर चलती थी !
‘नील’ नदी भी खोयी , फिर तन्हा – तन्हा !!
✍नील रूहानी,,,01/08/2022,,,🌸
( नीलोफ़र खान )