ग़ज़ल _ ज़िंदगी भर सभी से अदावत रही ।
आदाब दोस्तों,,,,
बह्र _ 212 212 212 212
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ग़ज़ल
1,,,
ज़िंदगी भर सभी से अदावत रही ,
बात ही बात में, बस शराफ़त रही ।
2,,,
मिल गए जब तो, जैसे जुदा ही न थे ,
नाम भर को ही , उनसे ये उल्फ़त रही ।
3,,,,
दूरियाँ दरमियां बढ़ गई इस क़दर,
लोग समझे कि हम में, मसर्रत रही ।
4,,,,
बेकली , बेबसी , ने उसे चुप किया ,
जब अधूरी किसी की, मुहब्बत रही ।
5,,,,
शायरी ने सहारा , दिया उसको था ,
भूल बैठा गमों को , ज़हानत रही ।
6,,,
यूँ तो ख़ामोश थे , हम इधर वो उधर ,
हां ,दिलों में मगर , इक क़यामत रही ।
7,,,,
आशिक़ी इश्क़ की इक डगर जान लो,
आजिज़ी ‘नील’ की बस नियामत रही ।
✍️ नील रूहानी , 05/07/2024,,,
( नीलोफर खान )