ग़ज़ल _ खुदगर्जियाँ हावी हुईं ।
आदाब दोस्तों 🌹🥰
एक ताज़ा #ग़ज़ल
बह्र …. 2212 2212 2212 2212,,
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1,,,
खुदगर्जियाँ हावी हुईं , खोया यहां का नूर है ,
कैसे कहें उसको गलत,दिखने में जो माज़ूर है।
2,,,
इक बार जो हँस कर गया ,वापस नहीं आया इधर ,
दीवानगी कहती रही ,शायद यही दस्तूर है ।
3,,,
दौलत मिली शुहरत मिली, कदमों के नीचे अर्श भी ,
हाथों में बाज़ी आ गई, सब को लगा मगरुर है।
4,,,
खामोश होकर कर रहा वो नेकियों पर नेकियाँ ,
उसकी ये आदत ने उसी को कर दिया मशहूर है ।
5,,,
मूसा कलीमुल्लाह करते बात जब अल्लाह से ,
चट्टान जिस पर थे खड़े ,वो बा-खुदा कुहेतूर है।
6,,,
सख़्ती न कर नाज़ुक है ये ,थी इल्तिजा बस “नील” की ,
बेटी सभी की इस जहां में , नूर सी इक हूर है ।
✍️नील रूहानी,,, 13/06/2024,,,,
( नीलोफर खान ).