ग़ज़ल _ आराधना करूं मैं या मैं करूं इबादत।
आदाब दोस्तों 🌹🥰
दिनांक 11/06/2024🌹
बह्र……221 2122 221 2122,,,,
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ग़ज़ल
1,,
आराधना करूं मैं , या मैं करूं इबादत ,
कोई फरक़ नहीं है ,लिख दो यही इबारत ।
2,,
ढूंढी हज़ार राहें , मैं ने फ़रक़ न पाया ,
गुमनाम ज़िंदगी को ,मिलती रहीं ज़लालत ।
3,,
करना था बंदिगी जब ,उस पार हो ही आते ,
बेवजह राह में क्यों , करने लगे शरारत।
4,,
नाहक़ भटक रहें हो ,चारों दिशाएं तुम भी ,
खुद मन में झांक लोगे ,मिल जायेगी इनायत ।
5,,
इज़्ज़त करो सभी की, इज़्ज़त मिले तुम्हें भी ,
सोचें बुलंद करना , गर चाहते हो शुहरत ।
6,,
गुल खिल गए हैं सारे, खुशबू हवा में फैली,
दिन ‘नील’ के हसीं हैं , रमज़ान की बदौलत।
✍️नील रूहानी,,,, 03/04/2024,,,,,,🥰
( नीलोफर खान )
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