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29 Oct 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

बोलता है न बात करता है
जाने किस बात पर वो गुस्सा है

इश्क़ जब दर्द रंज़ सहता है
तब निखरता ये और ज़्यादा है

कैसे दीदार माहरू का हो
रुख़ पे जुल्फों का डाले पर्दा है

दर्द-ए-दिल देते और फिर मुझसे
पूछते हैं तुम्हें हुआ क्या है

और कुछ देर ही ठहर जाते
वक़्त देखो न ये रुका सा है

यूँ न घबरा तू दर्द से प्रीतम
इश्क़ में ये ही सब तो चलता है

लज़्ज़ते दर्द वो बताएगा
इश्क़ में जो भी हद से गुज़रा है
गिरह——-

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
70 Views

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