ग़ज़ल
दर्द का जिसको सिलसिला न मिला
इश्क़ का उसको ज़ाइक़ा न मिला
सबके दामन थे दाग़दार वहाँ
कोई महफ़िल में पारसा न मिला
फोन पर मिलने को कहे लेकिन
एक भी दिन वो बेवफ़ा न मिला
इक दफ़ा भी ये हो न पाया जब
ज़ख्म उससे मुझे नया न मिला
दिल जिगर जान सब गँवा कर भी
इश्क़ में कोई फ़ायदा न मिला
सबके घर में गई ख़ुशी लेकिन
मेरे घर का उसे पता न मिला
प्यास शिद्दत से थी मगर प्रीतम
दूर तक मुझको मयकदा न मिला
प्रीतम श्रावस्तवी
जीस्त में हों न मुश्क़िलें जिसके
ज़िन्दगी का उसे मज़ा न मिला
गिरह…………