#ग़ज़ल/
#ग़ज़ल
■ अनछुआ सा ख़याल आने दो।।
【प्रणय प्रभात】
◆ इक ग़ज़ल को वजूद पाने दो।
अनछुआ सा ख़याल आने दो।।
◆ सबकी चाहत है उम्र भर रोऊँ।
तुम मुझे कहकहा लगाने दो।।
◆ मुझको फिर इम्तिहान देना है।
उसको फ़ितना नया उठाने दो।।
◆ वक़्त मुश्किल से बुरा आया है।
आज अपनों को मुस्कुराने दो।।
◆ दाग़ छिप जाएंगे दिवारों के।
और काई ज़रा सी छाने दो।।
◆ फ़र्ज़ अपना है अपनी हस्ती को।
बेसबब अश्क़ मत बहाने दो।।
◆ बोल सकता नहीं इशारों में।
राज़ दिल के मुझे बताने दो।।
◆ ख़ून वाले परख लिए सारे।
दिल का रिश्ता नया बनाने दो।।
◆ एक साया हो साथ चलने को।
मरमरी धूप पास आने दो।।
◆ दिल ये कहता है हूँ जवाँ अब भी।
आईना उम्र को दिखाने दो।।
◆ ढंग से परवरिश करो ग़म की।
सब्र उसको भी आज़माने दो।।
◆ साज़ ले कर के रात आई है।
एक नग़मा तो गुनगुनाने दो।।
◆ हेकड़ी जिस्म भूल जाएगा।
दर्द को पीठ थपथपाने दो।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्य प्रदेश)