ग़ज़ल
खिले ना फूल तो माली की जुस्तजू क्या है
बहार आने से पहले खिंजाँ की बू क्या है
करें अगर जो इबादत सुकून मिलता है
महर न हो अगर ख़ुदा की तो वज़ू क्या है
चमक रहा है अगर शिष्य वो ही है शिक्षा
ग़लत सही न समझ पाया वो गुरू क्या है
कोई न दोस्त है रहबर न कोई भी अपना
किसे बताएं भला अपनी आरज़ू क्या है
जो बेटियों को पराया बताते रहते हैं
तो उनसे पूछना चाहूँगी के बहू क्या है
वतन पे आंँच जो आये तो उठती शमशीरें
न रग में खौलता जो आपके लहू क्या है
ख़बर नहीं है अगर “दीप” शब मिटे कैसे
दिखें जो जुगनू कतारों में चार सू क्या है
—-दीपाञ्जली दुबे ‘दीप’