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21 Jul 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

अपना कहीं पराया लगता है कोई
सामने होके साया लगता है कोई

अपने चेहरे रोज़ बदलता है कोई
गिरगिट जैसी काया लगता है कोई

पैसों में बातें करता है जीवन की,
दुनिया भर की माया लगता है कोई

रिश्तों पर जब धूप तेज हो जाती है
घने पेड़ की छाया लगता है कोई

एक दूजे से डर सबको यूँ लगता है
नर होकर चौपाया लगता है कोई

हँसता है मजबूरी में ऐसे कोई
फूल कहीं मुरझाया लगता है कोई

कोई ‘महज़’ बुलाने पर ही आता है
मेहमां बिना बुलाया लगता है कोई

Language: Hindi
1 Like · 78 Views
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