ग़ज़ल
ग़म गीत ग़ज़ल और क़ायनात लिख रहा हूँ
इस तरह नज़रों को सारी रात लिख रहा हूँ
कोई पूछता कि कशमकश को क्यों चबा रहे
कह देता हूँ कि दर्दे ज़ज्बात लिख रहा हूँ
बैठे है कुछ परिन्दें सकून की तलाश में
ये देख कर वतन के हालात लिख रहा हूँ
दरिया है समन्दर है आसमां है दूर तक
इंसान के फितरत को साथ साथ लिख रहा हूँ
नज़रों से गिरूं आ कर नज़रों में किसी के ना
ये सोच ‘महज़’ ख़ुद को हज़रात लिख रहा हूँ