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22 Jun 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़म गीत ग़ज़ल और क़ायनात लिख रहा हूँ
इस तरह नज़रों को सारी रात लिख रहा हूँ

कोई पूछता कि कशमकश को क्यों चबा रहे
कह देता हूँ कि दर्दे ज़ज्बात लिख रहा हूँ

बैठे है कुछ परिन्दें सकून की तलाश में
ये देख कर वतन के हालात लिख रहा हूँ

दरिया है समन्दर है आसमां है दूर तक
इंसान के फितरत को साथ साथ लिख रहा हूँ

नज़रों से गिरूं आ कर नज़रों में किसी के ना
ये सोच ‘महज़’ ख़ुद को हज़रात लिख रहा हूँ

Language: Hindi
3 Likes · 64 Views
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