ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 23 )
बह्र ::: 122 122 122 12
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ
काफिया _ ई // रदीफ़ _ हो फकत
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ग़ज़ल
1,,
नज़र की नज़र आशिक़ी हो फ़क़त ,
ज़ुबां पर मेरा नाम ही हो फ़क़त ।
2,,
जहाँ जाइए आप दिलबर मेरे ,
वहीं रूबरू बंदिगी हो फ़क़त ।
3,,
निज़ामी हो दुनिया की हर शय वहाँ ,
निज़ामत भली चाहती हो फ़क़त ।
4,,
नई रस्म आज़ाद हो जाएगी,
मुहब्बत अगर ज़िंदगी हो फ़क़त ।
5,,
वहीं जा के खिदमत करो बारहा ,
जहाँ पर बसी मुफलिसी हो फ़क़त ।
6,,
करो मशवरा उस जगह जा के फिर ,
सुने आप की ,आदमी हो फ़क़त ।
7,,
है मीठी ज़ुबां , आप उर्दू पढ़ो ,
मज़ा आएगा , शायरी हो फक़त ।
8,,
बहन इस की हिंदी को कहते सभी,
हैं जन्मी ये दोनों , खुशी हो फकत ।
9,,
है मीठी ज़ुबां , आप उर्दू पढ़ो ,
मज़ा आएगा , आपसी हो फक़त ।
10,,
बुलाया है उस शख्स को आज फिर,
लिखे जो इधर फ़ारसी हो फ़क़त ।
11,,
कहा “नील” ने आप सब से यही ,
जो तहरीर हो ,कागज़ी हो फ़क़त ।
✍️नील रूहानी,,, 07/05/2024,,,,
( नीलोफर खान , स्वरचित )