ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 18 )
बह्र ….1222 1222 1222 1222,,
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
क़ाफिया _ अरा // रदीफ़ _ समझो अगर समझो
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ग़ज़ल
1,,
बड़ा होता हुनर का दायरा , समझो अगर समझो,
दिलाता है ये सबको आसरा,समझो अगर समझो ।
2,,
बढ़ाता है ये इज़्ज़त भी, क़लम हो या हथौड़ी हो ,
न कह पाए कुई फिर बावरा,समझो अगर समझो।
3,,
कला होती सभी में हैं ,निकालो इसको बाहर तुम ,
तुम्हें दिल कह उठेगा मायरा, समझो अगर समझो।
4,,
अगर कुछ सीखना उस्ताद से आगे न जाना तुम ,
न दामन छोड़ना फिर साबरा ,समझो अगर समझो।
5,,
हुनर के नाम गिनवाए , हज़ारों पेज भी कम हैं ,
सफ़र है ज़िंदगी तुम सायरा, समझो अगर समझो।
6,,
हुनर लाखों हैं दुनिया में, कुई भी सीख लो बन्दे ,
बनी है “नील” भी इक शायरा ,समझो अगर समझो।
✍️नील रूहानी ,,,22/05/2024,,,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान , स्वरचित )
शब्दार्थ __
दायरा _ घेरा , आसरा _ घर , सायरा _यात्री ,,, मायरा _सराहनीय , साबरा _ धैर्यशक्ति,,,
बावरा _ बेवकूफ , दिवाना,, शायरा _ कवित्री।