ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 16 )
बह्र …. 122 122 122 122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
क़ाफिया _ आरा ,, रदीफ़ _ गैर मुरद्दफ़
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ग़ज़ल
1,,,
मुकद्दर बनाया था , जिसने हमारा ,
वही बन गया अब , हमारा सहारा ।
2,,,
नज़र जाए जिस ओर वो ही दिखे है ,
बड़ा खूबसूरत , लगे है नज़ारा ।
3,,,
उछलता है मस्ती में, ठहरा कहां है ,
समंदर उसी का , उसी का किनारा ।
4,,,
मिला जो नसीबों से खुश हो लिया सब,
ज़मीं आसमां भी , मुझे है गवारा ।
5,,,
वो जन्नत कदम के तले रख दी उसने ,
मेरी गोद में आ गया , जब दुलारा ।
6,,,
करो प्यार दुनिया की हर एक शय से ,
बिगड़ता कभी भी नहीं कुछ तुम्हारा ।
7,,,
सख़ी था जो कहता,गया “नील” से ये ,
बुलंदी पे पहुंचेगा , इक दिन सितारा ।
✍️ नील रूहानी ,, 30/01/2024,,
( नीलोफर खान, स्वरचित )