ग़ज़ल
आदाब दोस्तों 🌹🥰
बह्र __ 2122 1122 1122 22 ( 112 )
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ग़ज़ल = ( 7 )
1,,
खुद भी हैरां हूं , मुकद्दर के इनामात लिखूं ,
दिल के अरमान लिखूं, या कि फ़सादात लिखूं ।
2,,
राह चलते में लकीरें , भी बदल जाती हैं ,
छूट जाते हैं जो हाथों से , वो लम्हात लिखूं।
3,,,
जान अपनी भी बचाने को ,न सर पर साया ,
हमने देखें है जो सहरा में, वो आफ़ात लिखूं ।
4,,,
छटपटाता ही रहा, साँस निकलते दम तक ,
खूब बरसी थी जो आंखों से ,वो बरसात लिखूं।
5,,,
भूख ने छीन लिया , हाथ से टुकड़ा उसके ,
सरहदों पर भी, जो फ़ौजी से हुई मात लिखूं ।
6,,,
चाहतें और उमंगें भी , न पीछा छोड़ें ,
उनके हाथों से मिले मुझको ,तो सौगात लिखूं ।
7,,,
खेल खेला था जो अपनों ने , जुदाई तक का ,
टूटे रिश्तों को भला कैसे , मैं जज़्बात लिखूं ।
8,,,
अब न रिश्ता है मसाफत का , कई बरसों से ,
सोचती हूं कि लिखूं उनको ,तो क्या बात लिखूं ।
9,,,
पाल देता है जो बंजर में , नए पौधों को ,
रब जिसे कहते हैं ,क्या उसकी करामात लिखूं ।
10,,,
ज़र्रे ज़र्रे में बसी है , जो खुदा की निकहत ,
मुस्कुराते हुए लम्हों के , भी हालात लिखूं ।
11,,,
रात दिन जल के भी, जलना जिसे आया ही नहीं,
क्या उसी फूल को अब ‘नील’ की औकात लिखूं।
✍️नील रूहानी ,,,15/02/2024,,
( नीलोफर खान,, स्वरचित )