ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 3 )
बह्र – 22 22 22 22 22 22 22 2 (2×15)
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फ़ा ,,
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ग़ज़ल
1,,
सारा ज्ञान नहीं मिलता, सबको हर बार किताबों से ,
ठोकर खाकर सीखा जाता ,मिलते हुए तजुर्बों से ।मतला
2,,
रुकते कहां क़दम मेरे अब,सड़कों और निशानों से ,
समझौता कर पाएंगे क्या , अपने आज उसूलों से । हुस्न ए मतला
3,,
अच्छा जीवन जीने के ,क्या उनके अरमान नहीं हैं ,
कैसे बीती रात तुम्हारी , पूछो उन मज़दूरों से।
4,,
मेहनतकश मज़दूरों का जब दर्द सहन कर पाया था ,
तब चलना मैंने सीखा ,उनके मज़बूत इरादों से ।
5,,
जब साथ चले डगर डगर ,तब जाकर उनको पहचाना ,
कितना लड़ते हैं हर दिन वो ,आँधी से , तूफ़ानों से ।
6,,
प्यार से जब खाना पूछा, गमगीन निगाहों से बोला ,
पेट कहां भरता है यारों , अपना चार निवालों से ।
7,,
“नील” सवालों में उलझी है,कौन जवाबों को देगा ,
अत्याचार हुआ उन पर क्यों, क्या तकलीफ़ किसानों से।
✍️नील रूहानी ,,, 01/05/2024,,,,,,,,,,🥰
( नीलोफर खान , स्वरचित )