ग़ज़ल
अब ये चर्चा आम बहुत है।
राजनीति बदनाम बहुत है।।
बढ़ती जनसंख्या के कारण,
जगह-जगह पर जाम बहुत है।
यदि सरकारी नौकर हैं तो,
जीवन में आराम बहुत है।
अम्मा दिन भर खटती रहती,
कभी न कहती काम बहुत है।
रोज कमाने- खाने वाला,
नहीं देखता घाम बहुत है।
दौर- ए- इंटरनेट के बच्चे,
दुनिया का इल्हाम बहुत है।
सुंदर सुबह बनारस की तो,
मस्त अवध की शाम बहुत है।