ग़ज़ल
ग़ज़ल
इस तरह हम निभाते रहे प्रीत को,
धड़कनों में बसाया है बस मीत को ।
सब सितम पे सितम हम पे ढ़ाते रहे,
आओ तुम भी निभा दो इसी रीत को।
ठानकर जो चलो तो मिले मंजिलें,
आँखों में अपनी रखें रहो जीते को ।
दिल है घायल मगर लब पे मुस्कान है,
दिल मेरे गा सदा प्यार के गीत को ।
द्रोण ने क्यों अँगूठा लिया मांग कर,
तोड़कर आस्था की प्रबल भीत को।
अंजना छलोत्रे ‘सवि’