ग़ज़ल
खुद को अपना चेहरा नजर नहीं आता।
घर की छत से वो घर नजर नहीं आता।।
रातों दिन औरों पर तवज्जो है सबकी।
अपना ऐब किसी को नजर नहीं आता।।
जलते हुए चमन की कलियां प्यासी है।
शायद कोई सागर अब इधर नहीं आता।।
तिल -तिल के रोज मारता है जो पूनम।
नफ़रत के जैसा कोई जहर नहीं आता।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम