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30 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

कौन अपना यहाँ, किसको अपना करें
ज़िंदगी का इसे हम तजुर्बा करें

वो भी राहों में पत्थर बिछाए जिसे
फूल सा हम सहेजें, सराहा करें

जो मिला हमको क़मतर से भी क़म मिला
क्या करें गर खुदा से ना शिकवा करें

चाहते हो कि तुम हमको ठुकराओ और
हम तुम्हारी हमेशा ही पूजा करें

तुम जो देखो इधर कह दें इक बात हम
अलहदा तुमसे हम कुछ तो देखा करें

वो फरिश्ते जो मिलते हैं एहसास में
उनका रास्ता भी कब तक निहारा करें

जिंदगी एक तमाशा बनी है मेरी
आप आएं इसे दिल से देखा करें

ये मुनासिब नहीं और ये मुमकिन नहीं
जिंदगी को अज़ीयत पे ज़ाया करें..

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