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25 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

न जाने किस लिए ये मन मेरा सहमता है
जो अपने मन के मुताबिक ये कुछ भी करता है🌹

मैं उसकी देखभाल एक जुनूं से करती हूँ
वो एक फूल है 🌹हवा से भी सिहरता है🌹

लड़ाई ठान ली है मेरे मुक़ाबिल उसने
मगर शिक़स्त का भी सोच के वो डरता है🌹

किसी के होने से तन्हाइयां नहीं जातीं
किसी का होना कभी बेशुमार खलता है 🌹

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