ग़ज़ल
न जाने किस लिए ये मन मेरा सहमता है
जो अपने मन के मुताबिक ये कुछ भी करता है🌹
मैं उसकी देखभाल एक जुनूं से करती हूँ
वो एक फूल है 🌹हवा से भी सिहरता है🌹
लड़ाई ठान ली है मेरे मुक़ाबिल उसने
मगर शिक़स्त का भी सोच के वो डरता है🌹
किसी के होने से तन्हाइयां नहीं जातीं
किसी का होना कभी बेशुमार खलता है 🌹