ग़ज़ल
भूख लाचार करती है इंसान को
आदमी बेचता तब है ईमान को
इस सदी में भी अल्फ़ाज़ के अश्म से
कर रहे लोग घायल हैं बेजान को
जख्म़ का सिलसिला आज भी जारी है
फूल तरसा सहर-शाम गुलदान को
नाव काग़ज़ की दफ़्तर से चल तो पड़ी
बाढ़ में कर रही याद हनुमान को
पेट की भूख कितने युवा स्वप्न की
मेट देती अचानक ही मुस्कान को
वे लहू बन इन्हीं आँखों से बह रहे
वक्त अब आ गया पास ऐलान को
जिंदा बुत साथ के साथ बनवा रहे
बुत सुधा कितने तरसे हैं पहचान को
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
3/4/2024