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5 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

भूख लाचार करती है इंसान को
आदमी बेचता तब है ईमान को

इस सदी में भी अल्फ़ाज़ के अश्म से
कर रहे लोग घायल हैं बेजान को

जख्म़ का सिलसिला आज भी जारी है
फूल तरसा सहर-शाम गुलदान को

नाव काग़ज़ की दफ़्तर से चल तो पड़ी
बाढ़ में कर रही याद हनुमान को

पेट की भूख कितने युवा स्वप्न की
मेट देती अचानक ही मुस्कान को

वे लहू बन इन्हीं आँखों से बह रहे
वक्त अब आ गया पास ऐलान को

जिंदा बुत साथ के साथ बनवा रहे
बुत सुधा कितने तरसे हैं पहचान को

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
3/4/2024

Language: Hindi
133 Views

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