ग़ज़ल
मौसम भी कुछ कहता होगा
शायद शिक़वा करता होगा,
शाख़ों से पत्ते क्यूँ टूटे
शाखों को भी खलता होगा,
चाँद अगर निकले न कभी तो
रात का आलम कैसा होगा,
जिससे वफ़ा की थी मैंने वो
देख के मुझको छिपता होगा,
आज भी उसके बंद मकां में
आहट कोई सुनता होगा