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4 Mar 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

मौसम भी कुछ कहता होगा
शायद शिक़वा करता होगा,
शाख़ों से पत्ते क्यूँ टूटे
शाखों को भी खलता होगा,
चाँद अगर निकले न कभी तो
रात का आलम कैसा होगा,
जिससे वफ़ा की थी मैंने वो
देख के मुझको छिपता होगा,
आज भी उसके बंद मकां में
आहट कोई सुनता होगा

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