ग़ज़ल
अरकान- फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन /फ़इलुन
वज़्न-2122 1212 22/112
बह्र का नाम :-़ बह्रे-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
क़ाफ़िया:- ज़माने (आने की बंदिश)
रदीफ:- में
गज़ल का मतला
वो तुलें हैं मुझे मिटाने में।
गूँजती हूँ मैं हर फसाने में।
हुस्ने मतला
दिल-ए-शायर हैं सब ज़माने में।
हुस्न जानिब से दिल लगाने में।
मुस्कुराने को मुस्कुराती हूँ,
हर्ज़ क्या यूं ही मुस्कुराने में।
साल-दर-साल और एक लम्हा,
जीस्त बीती तुम्हें भुलाने में।
दिल में तेरा रहा न नाम निशां
वक्त थोड़ा लगा मिटाने में।
रूठ जाती है बहर क्यों मुझसे
देख मिसरे को गुनगुनाने में।
शर्म दहशत झिझक परेशानी
कौन हमदर्द है ज़माने में।।
बाज आये ना हरकतों से तो,
रात तेरी कटेगी थाने में।😂
मक़्ता
खूब शोहरत है मिली नीलम
ना कमी है दिली ख़ज़ाने में।
नीलम शर्मा ✍️