ग़ज़ल
पर्दाफाश करूँ मैं कैसे ,किस्सा बड़ा अजीब है।
लाड जताती कभी ज़िंदगी,लगती कभी रकीब है।।
सुबह-शाम माँ जिसका माथा,चूम रही है प्यार से,
सच मानो वह इस दुनिया में,गोया नहीं गरीब है।।
कोई कड़ी धूप में झुलसे ,कोई बैठा छाँव में,
जिसे मिला है जो भी वह तो,उसका यार नसीब है।।
सजदा करने लगता है वो,देखे जो भी रूप को,
जन्नत लगता सारा आलम,अपना खुदा हबीब है।।
अनगढ़ हीरे से कलाम को ,देकर वक्त तराश दे,
आज जहाँ में मिलना मुश्किल,ऐसा गुणी अदीब है।।
राज़ पता होते हैं उसको,दिल के अंदर छुपे हुए,
जो बन खासमखास हमारा ,रहता सदा करीब है।।
पड़ी दरमियां दिल के नापें ,कैसे कहो दरार को,
नहीं आज तक इस धरती पर,ऐसी बनी जरीब है।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय