ग़ज़ल
चर्चा जो चली है तो कोई बात हुई होगी
ख़त कोई मिला होगा मुलाकात हुई होगी
ग़र राज़ धुआँ होगा सुलगा जरूर होगा
छिपता ही गया होगा जब रात हुई होगी
मौसम सी हँसी कोई बादल से मिली होगी
सबको भिंगोई होगी ग़र बरसात हुई होगी
होकर वो मसीहा मुजरिम सा क्यों है लगता
मजबूरियाँ क्या थी या क्या हालात हुई होगी
वो ख्वाब है ‘ महज़ ‘ या कोई हकीकत है
जिससे कहीं पर कोई कयानात हुई होगी