ग़ज़ल
ग़ज़ल
बेटियां
बेटियों के नाम से जलने लगा है आदमी।
रुख़ से उसके आज करवट बदलने लगा है आदमी।
ये बात सच है पहले सा ना रहा आदमी ।
बेटियों की धज्जियां उड़ाने लगा है आदमी।
बेटियों से ही इस गुलशन में बहार आएगी।
फिर भी बेटियों को बिकवाने लगा है आदमी।
जज्बे बहुत हैं उसमें हिम्मत भी उसको है ।
फिर भी उनको देखकर धोखा खाने लगा है आदमी।
हालात कुछ ऐसे हैं आदमी को कुछ खबर नहीं ।
बेटियों के साथ इश्क़ लड़ाने लगा है आदमी
Phool gufran